दोस्तों इस आर्टिकल में आप Ghaghra Ka Yudh के बारे में पढ़ेंगे जो आपके सभी परीक्षाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगा। चंदेरी का युद्ध इतिहास से जुड़ा एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है, जो सबसे ज्यादा बार पूछा गया है। यह प्रश्न चंदेरी की लड़ाई के बारे में है, जो आपको पूरा विस्स्तर से एक-एक कर के पढने वाले है।
घाघरा का युद्ध
घाघरा का युद्ध Ghaghra Ka Yudh1529 ई. में बाबर और अफगानों के बीच हुआ था। यह भारतीय इतिहास की पहली ऐसी लड़ाई थी जो ज़मीन और पानी दोनों पर लड़ी गई थी। घाघरा की लड़ाई के बाद 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई और खानवा की लड़ाई हुई।
खानवा के युद्ध में राजपूतों को पूरी तरह पराजित करने के बाद बाबर ने अपना ध्यान एक बार फिर अफगान विद्रोहियों की ओर किया। फ़रामुली और नुहानी जैसे सरदारों ने बाबर की सत्ता को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया था और चुनौतियाँ पेश करते रहे। चंदेरी में बाबर के अभियान के दौरान अफगानों ने अवध में विद्रोह कर दिया। उन्होंने शमसाबाद और कन्नौज पर कब्ज़ा कर लिया और बिहार में एक अफगान शासक के सहयोग से आगरा की सहायता करने की योजना बना रहे थे। अफगान विद्रोहियों को बंगाल के सुल्तान नुसरत शाह से भी सहायता मिली, जिससे उनका मनोबल बढ़ा। इस समय बाबर अफगानों को और कोई मौका नहीं देना चाहता था। इसलिए, चंदेरी पर विजय के बाद, उसने अपने प्रयासों को अफगान विद्रोहियों पर फिर से केंद्रित कर दिया।
जो बात इस लड़ाई को अनोखी बनाती थी वह यह थी कि यह दो विदेशी सेनाओं, अफगानों और बाबर की सेनाओं के बीच संघर्ष था। यह एक अनोखी लड़ाई थी जिसमें बाबर के सैनिक न केवल ज़मीन पर लड़े बल्कि युद्ध के मैदान से होकर बहने वाली बिहार की घाघरा नदी के पानी को भी अपने रंग से रंग दिया। इस युद्ध में बाबर को अधिक लाभ तो नहीं हुआ, परंतु इस संघर्ष के बाद वह बीमार पड़ गया और एक वर्ष के भीतर ही बीमारी से ग्रस्त हो गया।
घाघरा के युद्ध का कारण
घाघरा का युद्ध का मुख्य कारण अफगानों की बेचैनी थी। मुगलों के भारत आने से पहले अफगान भी यहां आ चुके थे और शासन की आकांक्षा रखते थे। हालाँकि, बाबर के आगमन के बाद स्थिति में भारी बदलाव आया। पानीपत की लड़ाई में बाबर ने अफगानों को निर्णायक रूप से हराया। हालाँकि बाद में शेरशाह सूरी ने मुगलों से सत्ता हासिल करने का प्रयास किया, लेकिन वह लंबे समय तक सफल नहीं हो सका।
युद्ध के प्राथमिक भड़काने वाले दो अफगान सरदार, पठान फरमुली और नुहानी सरदार थे। ये दोनों ही बाबर के शासन को स्वीकार नहीं कर रहे थे, लेकिन पानीपत की लड़ाई के बाद इनके पास न तो सेना बची और न ही हथियार। उनके अंदर ही विद्रोह की चिंगारी जल रही थी और इस चिंगारी को भड़काने वाला था बंगाल का शासक सुल्तान नुसरत शाह।
बंगाल के सुल्तान नुसरत शाह अफगानों के पूर्ण सहयोग में थे। वह नहीं चाहता था कि बाबर का विजयी अभियान किसी भी कीमत पर बंगाल तक पहुंचे। हालाँकि, उनमें स्वयं बाबर का सामना करने का साहस नहीं था और वे विद्रोहियों का समर्थन करके ही संतुष्ट थे।
इतिहासकारों के अनुसार, जब बाबर चंदेरी की लड़ाई में व्यस्त था, तब अफगान विद्रोहियों ने आम लोगों में अशांति फैलानी शुरू कर दी थी। हालाँकि इससे बाबर पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन इसके चलते अफगानों ने कन्नौज और शमसाबाद पर कब्ज़ा कर लिया। अब वे आगरा जीतने की तैयारी कर रहे थे। जब बाबर को इस बात की भनक लगी तो उसके पास एक ही विकल्प बचा – खुलेआम विद्रोहियों का सामना करना। वह जानता था कि यदि अफगानों ने आगरा पर कब्जा कर लिया, तो उन्हें दिल्ली में स्थिति बदलने में देर नहीं लगेगी।
घाघरा का युद्ध कहा हुआ था
छात्र अब इस लेख में घाघरा का युद्ध के बारे में पढ़ रहे हैं, जो बेहद महत्वपूर्ण है। घाघरा का युद्ध कहाँ हुआ था? इस तरह के प्रश्न आपकी परीक्षाओं में भी पूछे जाते हैं, तो चलिए अब इस लेख को अंत तक पढ़ें।
बाबर द्वारा लड़ा गया घाघरा का युद्ध 1529 ई. में बिहार राज्य में घाघरा नदी के पास हुआ था। यह लड़ाई बाबर की सभी लड़ाइयों में से आखिरी थी। यह मध्यकालीन इतिहास की पहली लड़ाई थी जो ज़मीन और पानी दोनों पर लड़ी गई थी। इस अंतिम युद्ध में बाबर ने घाघरा नदी के किनारे अपनी सेना का नेतृत्व किया।
घाघरा के युद्ध में किसकी विजय हुई
प्रिय छात्रों, अब हम घाघरा की लड़ाई पर चर्चा करने जा रहे हैं, विशेष रूप से इस लड़ाई में कौन विजयी हुआ और यह किसके बीच लड़ा गया था।
यह युद्ध भारत के बिहार में घाघरा नदी के पास हुआ था। यह बाबर और अफगान सेनाओं के बीच एक महत्वपूर्ण संघर्ष था। इस युद्ध में बाबर ने उल्लेखनीय जीत हासिल की, जिसे घाघरा के युद्ध के नाम से जाना जाता है, जो वर्ष 1529 ई. में हुआ था।
घाघरा के युद्ध का परिणाम
इस युद्ध के परिणामस्वरूप बाबर का शासन मजबूती से स्थापित हो गया, लेकिन संघर्ष के बाद वह बीमार पड़ गया। वह अपने अंतिम दिन शांति से बिताना चाहते थे और उन्होंने काबुल जाने का फैसला किया। वह काबुल जा रहा था और लाहौर भी पहुँच गया था, लेकिन हुमायूँ ने उसे आगरा आने का निमंत्रण भेजा और वह आगरा लौट आया। 1530 ई. में उसने हुमायूँ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और इस निर्णय के ठीक तीन दिन बाद 26 दिसम्बर, 1530 को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गयी।
बाबर की जीवनी
बाबर की जीवनी:
- जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को फरगाना, तुर्किस्तान में हुआ था।
- वह तैमूर का वंशज और चगताई तुर्क था।
- उनके पिता, उमर शेख मिर्जा, फरगना में एक छोटे से राज्य पर शासन करते थे।
- अपने पिता की मृत्यु के बाद, बाबर 11 वर्ष की आयु में वर्ष 1494 ई. में फरगना की गद्दी पर बैठा।
- उसके बाद, बाबर ने भारत पर आक्रमण शुरू किया। उसने अपने जीवनकाल में भारत पर पाँच बार आक्रमण किया।
- बाबर ने सभी पाँच आक्रमणों में विजय प्राप्त की।
बाबर के भारत पर आक्रमण
भारत में बाबर के आक्रमण:
बाबर ने 1519 ई. से 1526 ई. तक भारत पर पाँच आक्रमण किये।
पानीपत की पहली लड़ाई: यह बाबर का भारत पर दूसरा आक्रमण था। 21 अप्रैल, 1526 ई. को बाबर और दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इब्राहिम लोधी के बीच पानीपत के मैदान में युद्ध हुआ। इस लड़ाई को पानीपत की पहली लड़ाई के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में बाबर ने निर्णायक विजय प्राप्त की।
इस विजय के साथ ही दिल्ली सल्तनत का शासन समाप्त हो गया और भारत में मुगल वंश की स्थापना शुरू हुई। भारत में पहली बार तोपों और बारूद का प्रयोग पानीपत की लड़ाई में किया गया था।इस युद्ध में बाबर ने तुलुगुमा रणनीति का प्रयोग किया।
खानवा का युद्ध: पानीपत की विजय के बाद 16 मार्च, 1527 ई. को बाबर ने खानवा के युद्ध में मेवाड़ के महाराणा संघ को पराजित किया। इस युद्ध में बाबर ने राजपूतों को पूरी तरह से हराने के लिए अफगान विरोधियों के साथ सहयोग करना शुरू कर दिया।
चंदेरी का युद्ध: बाबर का भारत पर चौथा आक्रमण 19 मई, 1528 ई. को हुआ जब उसने चंदेरी के शासक मेदिनी राय को हराया।
घाघरा का युद्ध: यह बाबर का अंतिम अभियान था जिसमें उसने इब्राहिम लोधी के भाई महमूद लोधी के नेतृत्व वाली अफगान सेना को हराया।
बाबर का अंतिम युद्ध
बाबर की अंतिम लड़ाई, जिसे घाघरा की लड़ाई (घाघरा का युद्ध) के नाम से जाना जाता है, 6 मई, 1529 ई. को अफगान सेना और बाबर के बीच हुई थी। इस युद्ध में बाबर लगभग 48 वर्ष की आयु में विजयी हुआ और 26 दिसम्बर, 1530 ई. को आगरा में उसकी मृत्यु हो गई। प्रारंभ में, बाबर के अवशेषों को आगरा के बाग-ए-आराम उद्यान में दफनाया गया था।बाद में, उन्हें काबुल में उनके द्वारा चुने गए स्थान पर दफनाया गया।
बाबर ने अपनी आत्मकथा लिखी, जिसे “बाबरनामा” के नाम से जाना जाता है, जिसका बाद में अब्दुल रहीम खान खाना ने फारसी में अनुवाद किया।अपनी आत्मकथा में, बाबर ने औपचारिक लेआउट और उद्यान बनाने में उनकी रुचि का वर्णन किया, जो अक्सर दीवारों से घिरे होते थे और एक कृत्रिम नहर की उपस्थिति के कारण चार बराबर भागों में विभाजित होते थे। इन उद्यानों को “चार बाग़” के नाम से जाना जाने लगा।
FAQ घाघरा का युद्ध प्रसन्नोत्री
इस लेख में छात्रों को घाघरा का युद्ध से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब मिलेंगे, जो बेहद महत्वपूर्ण हैं।
💥 घाघरा का युद्ध कब और किसके बीच हुआ था?
यह युद्ध अत्यधिक महत्व रखता है और वर्ष 1529 ई. में बाबर और अफगानों के बीच लड़ा गया था।
💥 घाघरा नदी किस राज्य में स्थित है?
यह लड़ाई घाघरा नदी के पास हुई, जो बिहार में स्थित है। घाघरा का युद्ध एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है जो अक्सर आपकी परीक्षाओं में पूछा जाता है।
💥 Ghaghra Ka Yudh कब हुआ?
6 मई, 1529 ई. को.
💥 1529 में घाघरा के युद्ध में बाबर ने किसे हराया था?
उन्होंने अफगान शासक महमूद लोधी को हराया।
💥 महमूद लोधी को किसने हराया?
बाबर ने उसे हरा दिया.
💥 बाबर ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया?
उसने भारत पर कुल 5 बार आक्रमण किया।
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