Sumitranandan Pant Biography in Hindi:-“अगर हम कश्मीर को पृथ्वी पर स्वर्ग कहते हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तराखंड भी कम नहीं है। उत्तराखंड को अक्सर भारत में देवताओं की भूमि कहा जाता है।” यहाँ, घने देवदार के जंगल, सेब के बगीचे और विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला है बर्फ में, सभी के दिलों को मोहित कर लो। इसी स्वर्ग से एक प्रसिद्ध व्यक्तित्व का उदय हुआ जिसे सभी जानते हैं। एक क्षण रुककर सोचें, वह कौन हो सकता है?”
सुमित्रानंदन पन्त का प्रारंभिक जीवन
सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौशानी, उत्तराखंड (भारत) में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगा दत्त पंत था, जो गाँव के एक समृद्ध जमींदार थे। उनके पिता अपने बगीचों से फलों और फूलों का व्यापार करते थे और यह बहुत अच्छा चल रहा था। सुमित्रानंदन पंत की माता का नाम सरस्वती देवी था। उनका वास्तविक नाम गोंसाई दत्त था।
जब वह केवल पाँच वर्ष के थे, तो उनकी माँ का निधन हो गया, जिससे उन्हें गहरा नुकसान हुआ। वह अपनी माँ के बिना अधूरा महसूस करता था। हालाँकि, उनकी दादी ने यह सुनिश्चित किया कि उनके किसी भी भाई-बहन को अपनी माँ की कमी महसूस न हो। वह अपने सभी भाइयों और बहनों में आठवें स्थान पर थे। उनके सभी भाई-बहनों की देखभाल करना उनके पिता की जिम्मेदारी थी।
बचपन से ही उन्हें कविता लिखने का शौक था। वह उत्तराखंड के पहाड़ों में घूमते थे, प्रकृति में सांत्वना पाते थे और अपने विचारों को लिखते थे।
नाम(Name) | सुमित्रानंदन पन्त |
वास्तविक नाम (Real Name) | गोसाई दत् |
जन्म तारीख (Date of Birth) | 20 मई 1900 |
जन्म स्थान (Birth Place) | कौसानी, उत्तराखंड (भारत) |
माता का नाम | सरस्वती देवी |
पिता का नाम | गंगा दंत पंथ |
मुख्य कृतियाँ | पल्लव, चिदंबरा, सत्यकाम |
पुरुस्कार(Awards) | पद्म भूषण (1961), साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ (1968) |
उम्र [Age] | 77 साल (मृत्यृ के समय) |
मृत्यृ तिथि [Death] | 28 दिसंबर 1977 |
सुमित्रानंदन पन्त की काव्य कृतियाँ (Sumitranandan Pant Poetry)
सुमित्रानंदन पंत ने कई अन्य काव्य रचनाएँ लिखीं, जिनमें “ग्रंथी,” “गुंजन,” “ग्राम्या,” “युगांत,” “स्वर्णकिरण,” “स्वर्णधूलि,” “कला और बूढ़ा चाँद,” “लोकायतन,” “चिदंबरा,” और ” सत्यकाम,” और भी बहुत कुछ। अपने जीवनकाल के दौरान, उन्होंने 28 पुस्तकें प्रकाशित कीं, जिनमें कविताएँ, काव्य नाटक और निबंध शामिल थे। अपने व्यापक करियर के दौरान पंत एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में उभरे, लेकिन उनकी सबसे कलात्मक कविताएँ “पल्लव” में समाहित हैं, जो 1918 से 1924 तक लिखी गई 32 कविताओं का संग्रह है।
सुमित्रानंदन पन्त के पुरूस्कार और उपलब्धियाँ (Sumitranandan Pant Awards)
सुमित्रानंदन पंत को उनके साहित्यिक योगदान के लिए प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्म भूषण (1961), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1968), साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार शामिल हैं।
कौशानी में जिस घर में पंत ने अपना बचपन बिताया था, उसे “सुमित्रानंदन पंत वीथिका” नामक संग्रहालय में बदल दिया गया है। यह संग्रहालय उनके निजी सामान, कविताओं की मूल पांडुलिपियों, तस्वीरों, पत्रों और पुरस्कारों को प्रदर्शित करता है। इसमें एक पुस्तकालय भी है जिसमें उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है। हर साल संग्रहालय में उनकी स्मृति में एक पंत व्याख्यान माला (व्याख्यान श्रृंखला) का आयोजन किया जाता है। यहां “सुमित्रानंदन पंत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व” नामक पुस्तक प्रकाशित हुई है। उनके सम्मान में हाथी पार्क का नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत उद्यान रखा गया।
- सुमित्रानंदन पंत को 1961 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
- 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- कला और बूढ़ा चाँद के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार,से नवाजा गया।
- लोकायतन पर ‘सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार’
- ‘चिदंबरा’ पर उन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।
- सुमित्रानंदन पंत के नाम पर कौसानी में उनके पुराने घर को, जिसमें वह बचपन में रहा करते थे, ‘सुमित्रानंदन पंत वीथिका’ के नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। इसमें उनके व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुओं जैसे कपड़ों, कविताओं की मूल पांडुलिपियों, छायाचित्रों, पत्रों और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है। इसमें एक पुस्तकालय भी है, जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है।
पंत की लेखन शैली
सुमित्रानंदन पंत को आधुनिक हिंदी साहित्य का अग्रणी कवि माना जाता है। पंत ने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल भाषा में निखार लाया बल्कि उसे संस्कृति से ओत-प्रोत करने का भी प्रयास किया। जिस तरह से उन्होंने अपनी मनमोहक लेखनी के माध्यम से प्राकृतिक सुंदरता को शब्दों में कैद किया, उससे उन्हें ‘हिंदी साहित्य के शब्द निर्माता’ की उपाधि मिली। पंत की रचनाएँ न केवल रवीन्द्रनाथ टैगोर से बल्कि शेली, कीट्स और टेनीसन जैसे अंग्रेजी कवियों की शैलियों और रचनाओं से भी प्रभावित थीं। जबकि पंत को अक्सर प्रकृति कवि के रूप में माना जाता है, वह वास्तव में, मानवीय सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना में भी एक कुशल कवि थे। आप यहां रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी पढ़ सकते हैं।
सुमित्रानंदन पन्त की प्रसिद्ध “पल्लव” कविता (Sumitranandan Pant Pallav Poem)
अरे! ये पल्लव-बाल!
सजा सुमनों के सौरभ-हार
गूँथते वे उपहार;
अभी तो हैं ये नवल-प्रवाल,
नहीं छूटो तरु-डाल;
विश्व पर विस्मित-चितवन डाल,
हिलाते अधर-प्रवाल!
दिवस का इनमें रजत-प्रसार
उषा का स्वर्ण-सुहाग;
निशा का तुहिन-अश्रु-श्रृंगार,
साँझ का निःस्वन-राग;
नवोढ़ा की लज्जा सुकुमार,
तरुणतम-सुन्दरता की आग!
कल्पना के ये विह्वल-बाल,
आँख के अश्रु, हृदय के हास;
वेदना के प्रदीप की ज्वाल,
प्रणय के ये मधुमास;
सुछबि के छायाबन की साँस
भर गई इनमें हाव, हुलास!
आज पल्लवित हुई है डाल,
झुकेगा कल गुंजित-मधुमास;
मुग्ध होंगे मधु से मधु-बाल,
सुरभि से अस्थिर मरुताकाश!
सुमित्रानंदन पंत की पुस्तकें (Sumitranandan Pant’s Books)
- पल्लव (1942)
- ग्राम्य (1964)
- कला और बूढ़ा चांद (1959)
- गुंजन
- तारापथ (1968)
- चिदंबरा
पं. श्री सुमित्रानन्दन पन्त जी को प्रकृति का सुकुमार कवि क्यों कहा जाता हैः-
एक प्रकृति-प्रेमी शिक्षक-देखभालकर्ता प्रकृति के मातृ स्नेह और पिता के प्यार दोनों का प्रतीक है। कवि ने स्वयं लिखा है, “मेरी प्रारंभिक रचनाएँ प्रकृति-पृथ्वी के कैनवास पर अंकित हैं।” श्री सुमित्रानंदन पंत के काव्य में हमें कल्पना और भावनाओं की सूक्ष्म कोमलता दिखाई देती है। वह प्रकृति और मानवीय भावनाओं के अपने चित्रण में विकृत या कठोर भावनाओं को स्थान नहीं देते हैं। उनकी रोमांटिक कविताएं बेहद कोमल और कोमल भावनाओं को व्यक्त करती हैं। इन्हीं कारणों से, पंत जी को अक्सर “प्रकृति के संवेदनशील कवि” के रूप में जाना जाता है।
सुमित्रानंदन पंत के जीवन पर महान लोगों का प्रभाव
सुमित्रानंदन पंत का जीवन कई महान हस्तियों के विचारों से प्रभावित था। जब कोई व्यक्ति बड़ा हो जाता है तो वह आमतौर पर अपने घर और परिवार के बारे में सोचकर अपना जीवन जीना शुरू कर देता है। हालाँकि, सुमित्रानंदन पंत का जीवन दूसरों से अलग था। वयस्क होने पर उन्होंने अपनी अनोखी दुनिया बनानी शुरू कर दी।
उस दौरान वे कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी, फ्रायड और अरविंद घोष के विचारों से काफी प्रभावित थे। उनकी सोच काफी प्रगतिशील होती जा रही थी. वह प्रतिदिन कार्ल मार्क्स के विचारों को पढ़ते थे और उनका अनुसरण भी करते थे। एक दिन उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। वह पांडिचेरी स्थित अरविंद आश्रम में अरविंद घोष से मिलने गए थे.
लेकिन उन पर अरविन्द घोष के विचारों का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने वहीं रहने का फैसला कर लिया। उनका मन अब आध्यात्म की ओर झुक गया था। उन्होंने निश्चय किया कि वे आजीवन अविवाहित रहेंगे। वे अपनी कविताओं में भी अध्यात्म का जिक्र करने लगे। इन सभी महान लोगों ने उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला दिया था।
सुमित्रानन्दन पन्त का साहित्यिक परिचय
सुमित्रानंदन पंत का बचपन कौसानी के मनोरम वातावरण में बीता। परिणामस्वरूप, प्रकृति उनकी आजीवन साथी बनी रही, और उन्होंने प्रकृति में डूबे रहते हुए अपने काव्य प्रयासों को आगे बढ़ाया। अत: उनके काव्य में प्रकृति का वर्णन, उसके सौन्दर्य के प्रति प्रेम तथा सूक्ष्म कल्पनाएँ मुख्य रूप से पाई जाती हैं। प्रकृति चित्रण की दृष्टि से सुमित्रानंदन पंत को “हिन्दी साहित्य का वर्ड्सवर्थ” माना जाता है। छायावाद युग के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने सात वर्ष की अल्पायु में ही काव्य रचना प्रारंभ कर दी थी।
उनकी पहली रचना 1916 ई. में सामने आई। “गिरजे का घंटा” के बाद वे निरंतर काव्य साधना के प्रति समर्पित रहे। सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक कार्य कविंद्र रवि, स्वामी विवेकानंद जैसे कवियों और श्री अरबिंदो के दर्शन से काफी प्रभावित था। परिणामस्वरूप, उनके बाद के कार्यों में आध्यात्मिकता और मानवतावाद के स्पष्ट निशान मिलते हैं। उनकी कल्पना उदात्त, भावनाएँ कोमल और भाव प्रभावशाली होते हैं।
अंत में, सुमित्रानंदन पंत ने प्रगतिशील काव्य शैलियों की ओर रुख किया, जो उत्पीड़ितों और हाशिये पर पड़े लोगों के लिए सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत बन गये। पंत जी ने समाजवाद और गांधीवाद दोनों का समर्थन किया, अपने लेखन में अपना समर्थन स्पष्ट किया-।