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भारत में डचों का आगमन (arrival of dutch in india)

भारत में डचों का आगमन

17वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में पुर्तगालियों के पतन के पश्चात भारत में डचों का आगमन हुआ था। भारत आने वाले प्रथम डच नागरिक कार्नेलियस हॉटमैन था। डच नीदरलैंड या हॉलैंड से आए थे। डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1602 में नीदरलैंड में हुई थी। नीदरलैंड की सरकार ने डच कंपनी को पूर्व में व्यापार करने युद्ध लड़ने एवं संध्या करने की अनुमति दी थी। डच कंपनी पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए नीदरलैंड की सरकार ने एक 17 सदस्य बोर्ड की स्थापना की थी। डच ने भारत में अपना पहला व्यापारिक करखाना 1605 में मसूलिपटनम (आंध्र प्रदेश) में स्थापित किया था भारत आने वाला पहला डच गवर्नर पीटर बोथ था। परंतु भारत में डच के मुख्य प्रतिद्वंद्वी ब्रिटिश बने ।

डच के अन्य कारखाने थे ।

  • मसूलीपट्टनम (1605)
  • पुलिकट तमिलनाडु (1610)
  • सूरत (गुजरात)
  • चिनसुर (बंगाल )
  • कासिम बजारा (बंगाल)
  • पटना( बिहार )

उपरोक्त कारखाना की स्थापना से स्पष्ट है कि डचों की प्रतिद्वंद्विता ब्रिटिशों से भारत में दक्षिण भारत गुजरात एवं बंगाल के क्षेत्र में थी ।डचों ने भारत में मसाले सूती वस्त्र एवं कच्चे रेशम के व्यापार पर अत्यधिक बल दिया। डच भारत की अपेक्षा इंडोनेशिया के व्यापार में अधिक रुचि रखते थे ।1759 में ब्रिटिश और डच की सेना बेदरा के युद्ध में आमने-सामने आ गई। परिणाम स्वरुप ब्रिटिश विजय हुए बेदरा के युद्ध में डचों की पराजय में उन्हें भारत से अपना व्यापार समेटने के लिए मजबूर कर दिया ।

तीन मुख्य शब्दावली

कारखाना :-यह वह स्थान था। जहां से यूरोपीय व्यापार का नियमन करते थे यह स्थान निर्यात की जाने वाले वस्तुओं का संग्रहण केंद्र भी था ।इस फैक्ट्री कारखाना अथवा कंपनी कहा जाता था ।

किला या दुर्ग:- यह वह स्थान था। जो यूरोपीय के द्वारा अपने प्रशासनिक केंद्र के रूप में स्थापित किया जाता था। यहीं पर संबंधित कंपनी का सर्वोच्च अधिकारी भी निवास करता था।

कॉलोनी :-यह वह स्थान था। जहां यूरोपीय एकता के लिए एक ही स्थान पर बस जाते थे। इस कॉलोनी कहा जाता था। कालांतर में कॉलोनी शब्द से कॉलोनियलिज्म या उपनिवेशवाद की संकल्पना आई ।

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