प्राचीन भारतीय इतिहास में वैदिक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण युग “उत्तर वैदिक काल” था। यह काल इतिहास की उस समय धारा का अगला चरण था जो वैदिक काल से बढ़ती और घटती रही। इस युग में भारतीय समाज और संस्कृति के साथ-साथ विदेशी आक्रमणों में भी विभिन्न परिवर्तन और विकास हुए। इस लेख में हम उत्तर वैदिक काल के बारे में विस्तार से जानेंगे और इस युग की महत्वपूर्ण घटनाओं, संस्कृति और समाज पर चर्चा करेंगे।
1.उत्तरवैदिक समाज
उत्तर वैदिक काल की शुरुआत वैदिक काल के बाद हुई, जो लगभग 1000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच के समय को बताता है। इस काल में वैदिक साहित्य के अलावा भगवद गीता, उपनिषद, रामायण और महाभारत जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों का उदय हुआ। उत्तर वैदिक समाज में आर्य जाति के विकास के साथ-साथ विभिन्न जातियों और वर्णों का उदय हुआ। इस समय के समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जैसी वर्ण व्यवस्थाएँ विद्यमान थीं।
2.उत्तरवैदिक समाज
उत्तरवैदिक काल में संस्कृति में अनेक परिवर्तन हुए। इस काल में यज्ञ, हवन तथा वेदी-पूजा की पद्धतियाँ प्रचलित हुईं। भगवान विष्णु, भगवान शिव, माँ दुर्गा और भगवान गणेश जैसे देवताओं की पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक ग्रंथों में विकसित हुई। समय के साथ समाज में वेदों के अनुसार धार्मिक अनुष्ठान बढ़े और लोग ध्यान और त्याग के माध्यम से आत्मा की मुक्ति पाने पर ध्यान केंद्रित करने लगे।
3.उत्तर वैदिक समाज का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
उत्तर वैदिक काल में राजनीति के क्षेत्र में भी विकास हुआ। यह काल कई राजाओं जैसे मगध, वत्स, कोशल, विदर्भ, अवंती, शक, कम्बोज और गांधार राज्यों आदि के शासनकाल का काल भी था। इस काल में जनपदों और महाजनपदों की राजव्यवस्था विकसित हुई और राजव्यवस्था का उदय हुआ। धर्मशास्त्रों और राजनीतिक ग्रंथों में शासन, राजधर्म और राज्य के विकास के विषय पर चर्चा की गई है।
4.उत्तर वैदिक काल में विदेशी आक्रमण
उत्तर वैदिक काल में भारतीय सभ्यता के विकास के साथ-साथ विदेशी आक्रमणों का भी सामना करना पड़ा। इस काल में मगध राज्य के शासक जरासंध ने अपनी सेना सहित उत्तर भारत के कई राज्यों पर विजय प्राप्त कर ली थी। इसके अलावा यूनानी और फारसी सेनाओं ने भी भारतीय भूमि पर आक्रमण किया। यूनानी यात्री मेगस्थनीज ने भारत के मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में विदेशी यात्रियों के संबंध में एक रिपोर्ट दी थी। इसके अलावा सिकंदर महान ने भी भारत से युद्ध किया था।
5.उत्तर वैदिक काल में शिक्षा एवं विज्ञान का प्रचार
उत्तर वैदिक काल में शिक्षा एवं विज्ञान का भी प्रचार हुआ। वेदों के अलावा उपनिषद, वेदांग, ब्राह्मण और आरण्यक ने शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण ज्ञान प्रदान किया। विभिन्न विषयों में शिक्षकों की उपस्थिति से आध्यात्मिक और शारीरिक शिक्षा के लिए जाने जाने वाले शिक्षा संस्थानों का उदय हुआ। विज्ञान और गणित के क्षेत्र में भी प्रगति हुई और भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने भूगोल, ज्योतिष, गणित और अंतरिक्ष विज्ञान में अपने योगदान के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की।
6.उत्तर वैदिक काल के धार्मिक आन्दोलन
उत्तर वैदिक काल में धार्मिक आन्दोलन भी उभरे। इस काल में महावीर और गौतम बुद्ध जैसे महान संतों ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से मानवता को सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बदलने का प्रयास किया। गौतम बुद्ध के धर्मचक्र प्रवर्तन के बाद बौद्ध धर्म को भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण धार्मिक आंदोलन के रूप में स्थान मिला।
7.उत्तर वैदिक काल का अंत
उत्तर वैदिक काल का अंत लगभग 600 ईसा पूर्व हुआ जब भारतीय समाज और संस्कृति में विभिन्न परिवर्तन होने लगे। इस काल में मगध साम्राज्य ने भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया तथा भारतीय समाज राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से विकसित हुआ।
उत्तर वैदिक काल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय था जिसमें भारतीय समाज, संस्कृति, धर्म और राजनीति के कई महत्वपूर्ण पहलुओं का विकास हुआ। इस समय वैदिक साहित्य का उदय हुआ और विभिन्न धार्मिक आंदोलनों ने मानवता को समृद्धि और खुशहाली की ओर प्रेरित किया। इस युग की विचारधारा ने भारतीय संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और भारतीय इतिहास को एक सार्थक और संवेदनशील समयरेखा दी।
महत्वपूर्ण प्रश्न :
- उत्तर वैदिक काल का समय काल क्या है?
उत्तरवैदिक काल (1000–600 ई०पू०)
- उत्तर वैदिक काल कब से कब तक है?
पू. से 600 ई. पू. तक के काल को ‘उत्तर वैदिक काल’ कहा जाता है।
- उत्तर वैदिक काल का देवता कौन था?
उत्तरवैदिक काल में प्रजापति को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हो गया था।
- उत्तर वैदिक काल की प्रमुख फसल क्या थी?
इस अवधि के दौरान खेती की जाने वाली फसलें गेहूं, चावल और जौ, फलियाँ और तिल थे।
- प्रारंभिक और उत्तर वैदिक काल में क्या अंतर है?
प्रारंभिक वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल वैदिक काल के दो कालखंड हैं। प्रारंभिक वैदिक काल 2000 वर्ष से अधिक की अवधि का है, जो लगभग 1500 ईसा पूर्व ऋग्वेद की रचना से शुरू होता है। इसका समापन ऋग्वेद संहिता से होता है। उत्तर वैदिक काल की कुल अवधि लगभग 1200 वर्ष (1500-500 ईसा पूर्व) है।
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